डॉ. आशुतोष वाजपेयी का काव्य संग्रह
Wednesday 8 May 2013
ब्रह्म दिखे
लोभ न मोह न मत्सर हो तपनिष्ठ रहे यह जीवनधारा
मुक्त रहूँ बस तत्त्व गहूँ भवबन्धन काट मिले छुटकारा
हो धृति और क्षमा दमनेन्द्रिय मानवता हित चिन्तन सारा
ब्रह्म दिखे जड़ चेतन में कुछ भेद न हो अपना व तुम्हारा
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
2 comments:
Kailash Sharma
8 May 2013 at 09:44
बहुत सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
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Unknown
8 May 2013 at 19:44
abhaar kailash ji
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बहुत सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteabhaar kailash ji
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