Wednesday 29 May 2013

वाणी वन्दन

माँ प्रणाम भाव के सुमन आज अर्पित हैं
भाव सप्तनद का सरस जल हो गया
भाव से निकलती है वन्दना तुम्हारी अम्ब
भाव ही तुम्हारे पद पंकजों को धो गया
भाव की ही भूख तुमको भी ये सुना है नित्य
आज उर भावसिन्धु मध्य कहीं खो गया
भाव का ही नवनीत खोजता हूँ भोग हेतु
भक्तिभाव हर्ष वृष्टि से मुझे भिगो गया
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

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