क्रोध में अपार सिंहनी समान रूप धार
बोल पडी संगिनी मुझे सदा सताया है
काव्य साधना पथी बना रहा सदैव बोल
एक भी छदाम किन्तु क्यों नहीं कमाया है
एक लेखनी धनी दिखा मुझे मनुष्य मूर्ख
जो कि धनिकों के गेह जा के जन्म पाया है
और जो प्रसिद्धि पा गए उन्हें प्रसिद्ध भी तो
उनके धनी कुटुम्बियों ने ही बनाया है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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