Monday 13 May 2013

शिव का समन्वयवाद




मस्तक सोम धरा विष कण्ठ, न वैर यहाँ शिव ने पनपाया
शीश धरा निज गंग परन्तु ,न नेत्र तृतीय खुला न जलाया
वाहन सिंह दिया निज संगिनि, तो वृष ही अपने हित भाया
आज समन्वय चाह रहा यह भारत जो शिव ने सिखलाया

कण्ठ भुजंग अनेक पड़े, शिव चन्दन हैं, विष व्याप न पाया
पुत्र किये द्वय युक्त मयूर व मूषक से, न विरोध जताया
वैर महा जिनमे, उनको अपना कर के, गिरि धाम बसाया
आज समन्वय चाह रहा यह भारत जो शिव ने सिखलाया
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

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