Wednesday 1 May 2013

कथा अपनी है


मै पुरुषार्थ करूँ तुम वैभव भोग करो उर ठान ठनी है
शक्ति तुम्ही मम के हित हो तुमसे मिल के मन नित्य धनी है
कण्टक हों न कभी पथ में जिस ओर चलो अभिलाष घनी है
प्रेम कहीं पर भी जब उद्धृत हो समझो कि कथा अपनी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

2 comments:

  1. पुरुषार्थ सिखा नेक काम करे अब यह आश जगी है
    निहितार्थ लिखो पर पर हित में ही रचना ये पगी है
    हो कंटक पथ में हटा दोगे निश्चित इसमें संदेह नहीं है
    प्रेम भाव बढ़ता ही रहे कृष्ण सुदामा की कथा अपनी है
    -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला, जयपुर

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