मै पुरुषार्थ करूँ तुम वैभव भोग करो उर ठान ठनी है
शक्ति तुम्ही मम के हित हो तुमसे मिल के मन नित्य धनी है
कण्टक हों न कभी पथ में जिस ओर चलो अभिलाष घनी है
प्रेम कहीं पर भी जब उद्धृत हो समझो कि कथा अपनी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
पुरुषार्थ सिखा नेक काम करे अब यह आश जगी है निहितार्थ लिखो पर पर हित में ही रचना ये पगी है हो कंटक पथ में हटा दोगे निश्चित इसमें संदेह नहीं है प्रेम भाव बढ़ता ही रहे कृष्ण सुदामा की कथा अपनी है -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला, जयपुर
पुरुषार्थ सिखा नेक काम करे अब यह आश जगी है
ReplyDeleteनिहितार्थ लिखो पर पर हित में ही रचना ये पगी है
हो कंटक पथ में हटा दोगे निश्चित इसमें संदेह नहीं है
प्रेम भाव बढ़ता ही रहे कृष्ण सुदामा की कथा अपनी है
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला, जयपुर
bahut abhaar laxaman ji
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