सुन वृक्ष रहा जितना जग में अति प्राच्य वही तन ताप हरे
यदि माँ पितु को वय दान मिले तब जान कि ईश्वर पाप हरे
पर स्वार्थ भरा मन त्याग चला जनकों तक को सुख आप हरे
हरि राम कहो हरि कृष्ण कहो कलिकाल प्रभाव सुजाप हरे
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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