मै कहाँ कहाँ नहीं गया स्वधर्म रक्षणार्थ किन्तु एक भी सहायतार्थ है मिला नहीं
राष्ट्र का प्रसून दिव्य आज कुम्हला रहा परन्तु स्वार्थ वृत्ति से मनुष्य भी हिला नहीं
ये ध्वजा त्रिवर्ण स्वाभिमान हीन हो अपार जीर्ण शीर्ण सी प्रतीत हो इसे सिला नहीं
आसुरी प्रसार से अधर्म से महान कष्ट पा रही धरा यहाँ सुपुष्प भी खिला नहीं
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
लखनऊ
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