सुनो भाग्य के हो विधाता तुम्ही किन्तु माया रही है भ्रमों को बढ़ा
यही वो नटी है नहीं जो नटी है सदा दण्ड क्यों मानवों पे मढ़ा
तुम्ही को भजा है सुनो ब्रह्म हो तो यही पाठ भी नित्य ही है पढ़ा
अरे दीन क्यों दीन है ये बता दो कहो भाग्य ऐसा गया क्यों गढ़ा
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
लखनऊ
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