उसी को गहो धर्मपन्थी बनो धर्म का हेतु सारा विशुद्ध्यर्थ है
तपस्या तथा योग हो दान या पुण्य भी कृत्य ये पूर्ण व्रत्यर्थ है
अरे वो दिए जा रहा है तुम्हे नित्य तो मान लो बन्धु अभ्यर्थ है
निराकार है या कि साकार है ब्रह्म पूँछो नहीं प्रश्न ये व्यर्थ है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Ati Uttam Rachna
ReplyDeletedhanyavaad bandhu rajendra
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