Thursday 13 June 2013

सुवर्ण की लता दो माँ

अम्ब वन्दना के छन्द बनते नही हैं आज मुझसे अपार तुम रुष्ट क्यों बता दो माँ
वन्दना बिना है लेखनी भी अवरुद्ध मेरी ममता छिड़कती हो  इतना जता दो माँ
चाहता वसुन्धरा बनी रहे सनातनी ये इस हेतु धर्मराज का मुझे पता दो माँ
जागृत हों भारती के श्रेष्ठ पुत्र इस हेतु लेखनी से लिखवा सुवर्ण की लता दो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

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