Wednesday 31 July 2013

तप्त रक्त युक्त हो शिरा शिरा

दिव्य भाव का प्रवाह लेखनी करे सदैव शब्द शब्द शक्तिपात आर्यवीर में करे
तप्त रक्त युक्त हो शिरा शिरा शरीर मध्य ओज शक्ति वीर्य तेज वो महानता भरे
शत्रु को विवेकहीन शक्तिहीन दे बना व धर्मद्रोह वृत्ति भूमि से वही सदा हरे
वेद वेद-अंग का प्रसार दिग्दिगन्त हो कि आर्यधर्म के लिए जिए मनुष्य या मरे
रचयिता
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ 

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