हिन्दी साहित्य को चमत्कृत कर देने वाला छन्द 'आशुनिकुञ्ज' सवैया छन्द जिसे आज तक हिन्दी साहित्य के किसी साहित्यकार ने नहीं लिखा बड़े हर्ष और आह्लाद के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ...स्नेहाकांक्षी हूँ--
दीनों को देती हो लोकों को खेती हो पाता है वो भी जो हारा हो अम्बे!
धर्मालम्बी लोगों के पापों को धो देने वाली गंगा की धारा हो अम्बे!
दुष्टों को संहारा सन्तों को उद्धारा वीणा को धारे हो तारा हो अम्बे!
काली हो दुर्गा हो ज्वाला मातंगी हो त्रैलोकी तेरा जैकारा हो अम्बे!
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
दीनों को देती हो लोकों को खेती हो पाता है वो भी जो हारा हो अम्बे!
धर्मालम्बी लोगों के पापों को धो देने वाली गंगा की धारा हो अम्बे!
दुष्टों को संहारा सन्तों को उद्धारा वीणा को धारे हो तारा हो अम्बे!
काली हो दुर्गा हो ज्वाला मातंगी हो त्रैलोकी तेरा जैकारा हो अम्बे!
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
बहुत सुन्दर आशुनिकुञ्ज' सवैया छन्द के माध्यम से माँ अम्बे की वंदना और जयकारा लगाती काव्य रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं साधुवाद आदरणीय श्री (डॉ) आशुतोष वाजपेयी जी | इसके विधान की जानकारी करावे
ReplyDeletebahut bahut abhaar lakshman prasaad ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति....
ReplyDeletebahut bahut abhaar kailash ji
ReplyDeleteआदरणीय बाजपेई जी आपके छंद रचना का कोई जवाब नहीं , आप जैसा छंदकार इस समय शायद ही कोई दूसरा हो । आपसे एक अनुरोध है कि यदि आप उचित समझे तो विधान भी साथ ही लिख दिया करें , ताकि हम जैसों को कुछ लाभ प्राप्त हो सके । सादर
ReplyDeleteअवश्य अन्नपूर्णा जी इस छन्द का विधान तो अभी स्पष्ट कर देता हूँ ७ मगण २ गुरु अर्थात २३ वर्ण और सभी गुरु
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