डॉ. आशुतोष वाजपेयी का काव्य संग्रह

Thursday, 22 May 2014

एक सौगन्ध ये


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    मै पुरुषार्थ करूँ तुम वैभव भोग करो उर ठान ठनी है शक्ति तुम्ही मम के हित हो तुमसे मिल के मन नित्य धनी है कण्टक हों न कभी पथ में जिस ओर चल...
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    जो धन या पदहीन रहा उसको...... जन त्रस्त किया करते हैं हा! अपमान कुव्यंजन का नित सज्जन स्वाद लिया करते हैं ज्ञान न पूजित है गुणवान..........
  • माँ की महानता का एक चित्र देखिये
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  • एक चेतावनी भरतवंशियों के लिए
    नव संवत्सर की मंगल कामनाओं के साथ एक चेतावनी भरतवंशियों के लिए  संवत्सर नया आ गया सनातनी परन्तु  भगवा ध्वजा महत्ता आज घटने लगी चैत्र नवरात्...
  • लगा कि चोर हो गई
    माक्षिका सदा पवित्र ही कही गई परन्तु पश्चिमी प्रभाव में अशुद्ध घोर हो गई कालचक्र  भारतीय टूटने लगा कि मित्र अर्धरात्रि में सुनो नवीन भोर ...
  • विलम्ब न और करो
    रसना पर वास करो मुझको वर दो हर संकट आज हरो नित नूतन छन्द सुमाल सजा मम लेखन में तुम नित्य भरो यह अक्षम पुत्र सुनो जननी मुख में निज हस्त प...

आत्म परिचय

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